करोड़ो रूपए लेकर दान में दे दी यूपी सिंचाई विभाग के स्वामित्व की संपत्ति

हरिद्वार

1-2007 से गंगा पार बैरागी कैंप की भूमि की रजिस्ट्री पर प्रशासन ने लगा रखी हैं रोक.

2-रोक के बावजूद हुए दान पत्र पर उपनिबंधक कार्यालय अधिकारियों की कार्यशैली सवालों से घिरी सवाल.

अनिल बिष्ट/हरिद्वार। बैरागी कैंप स्थित कुंभ मेला क्षेत्र में सिंचाई विभाग की भूमि पर राजनीतिक संरक्षण मिलने की वजह से धार्मिक और सामाजिक संस्थाओं की आड़ में लगातार अतिक्रमण का दायरा बढ़ता जा रहा है। बैरागी कैंप मेला भूमि को बेचे जाने के अभी तक सौ-सौ रूपए के स्टांप पर बेचे व खरीदे जाने के मामले सामने आ रहे थे। लेकिन अब ताजा मामला बैरागी कैंप मेला आरक्षित भूमि गंगा पार पर प्रशासन की रोक के बावजूद उपनिबंधक कार्यालय में करोड़ों रूपए लेकर विक्रेता ने क्रेता को रजिस्टर्ड दान पत्र द्वारा गंगा पार शेखुपुरा की कई सौ वर्ग मीटर भूमि बेचे जाने का मामला सामने आया हैं।

सूत्रों के मुताबिक खसरा संख्या-53 शेखुपुरा गंगा पार बैरागी कैंप क्षेत्र स्थित की कई वर्गमीटर भूमि को उत्तरी हरिद्वार के व्यक्ति एवं लखनउ उत्तर प्रदेश की रहने वाली एक महिला को अलग-अलग बैनामों के माध्यम सेे करोड़ों रूपए लेकर उपहार स्वरूप दान में दे दी हैं। उपनिबंधक कार्यालय में बकायदा चौक बाजार कनखल निवासी ने भीमगोड़ा एवं उत्तर प्रदेश लखनउ को दानपत्र का रजिस्टर्ड एग्रीमैंन्ट कराया हैं। जबकि 2007 से तत्कालीन डीएम ने गंगा पार शेखुपुरा की भूमि की रजिस्ट्री/खरीद-फरोख्त पर रोक लगाई हुई हैं। प्रशासन द्वारा मेला भूमि की खरीद-फरोख्त पर रोक लगे होने के बावजूद गंगा पार मेला आरक्षित भूमि की रजिस्ट्री उपनिबंधक कार्यालय में अधिकारियों ने आंखे मूंद कर सेंटिग के तहत मेला आरक्षित भूमि का सौदा कनखल चौक बाजार निवासी ने लखनउ उत्तर प्रदेश की एक महिला को उपहार स्वरूप बैनामा करा दिया हैं। अब सवाल उठ रहा हैं कि जब गंगा पार शेखुपुरा की जमीनों की रजिस्ट्री पर प्रशासन की रोक लगी हैं तो उपनिबंधक कार्यालय ने कैसे मेला भूमि की गिफ्ट डीड पर अपनी स्वीकृति दे दी। जिसके बाद से उपनिबंधक कार्यालय की कार्यशैली को लेकर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। अब-जब मामला उच्च अधिकारियों तक पहुंचा तो उपनिबंधक कार्यालय में हडकंप मचा हैं। इतना ही नहीं इस मेला भूमि का क्षेत्रीय पटवारी से सांठ-गांठ कर मेला भूमि खरीदने वाले व्यक्ति ने दाखिल खारिज कराने के लिए आवेदन कर दिया था और प्रक्रिया भी जारी थी , लेकिन इसी बीच सारे मामले का खुलाासा हो गया। अब यूपी सिंचाई विभाग के अधिकारियों ने भी मामले में जिला प्रशासन को पत्र लिखकर मेला भूमि की रजिस्ट्री कैंसिल करने के साथ ही सरकारी संपत्ति बेचने एवं खरीदने वालों पर कार्रवाही के लिए पत्र लिखा हैं।

यहां सबसे बड़ी बात हैं कि मेला भूमि को मेलों के लिए सुरक्षित रख -रखाव की प्रशासन के पास कोई योजना ही नहीं है। यह मेला भूमि हैं और इसे खरीदन व बेचना कानूनी अपराध हैं का बोर्ड लगाकर प्रशासन ने अपना दायित्व पूर्ण कर लिया , नतीजन पूरा मेला क्षेत्र सिकुड़ता जा रहा है, लेकिन सरकारी मशीनरी आंखें मूंदे बैठी है। मेलों और स्नान पर्व के समय प्रशासन मेला क्षेत्र से अतिक्रमण हटाने की रस्म अदा करता है। मेला समाप्त होने के बाद मेला भूमि पर अतिक्रमण का खेल शुरू हो जाता है। माननीयों के चहेते अतिक्रमणकारियों की सरकारी संपत्ति कब्जानें की रेवड़ी इस कदर बांटते हैं जैसे यह भूमि उन्हे विरासत में मिली हो । अतिक्रमण पर नजर रखने वाले विभागीय कर्मियों का हाल मत पूछिए सरकारी कार्यालयों में सरकारी व सार्वजनिक संपत्तियों पर कार्रवाही के नाम महज खानापूर्ति ही नजर आती हैं। चाहे योगी की एक्शन वाली सरकार हो या फिर धाकड़ धामी की सरकार सरकारी तंत्र सरकारी संपत्तियों को कब्जा मुक्त कराने में न सिर्फ सुस्त हैं बल्कि संपत्तियों पर बढ़ते अतिक्रमणों पर भी इनकी खास दिलचस्पी कहीं नहीं दिखती हैं और इतना ही नहीं तमाम अवैध निर्माणों में सहभागिता से पर्दा डाल दिया जाता रहा हैं। राजनीतिक दलों का वोट बैंक के साथ-साथ विभागीय उदासीनता भी अतिक्रमण की यहां पर एक खास वजह हैं।

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