धार्मिक संपत्ति पर खतरा मंडराया ,बिल्डर और संत ने रखे नियम व कायदे ताक पर

हरिद्वार

हरिद्वार। देवभूमि उत्तराखण्ड हरिद्वार का कनखल शहर जिसे शिव की सुसराल और आस्था के साथ-साथ अध्यात्म की नगरी कहा जाता है। सदियों से अपनी सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर के लिए विश्वविख्यात है। इस पवित्र नगरी की गलियों और घाटों में वह आध्यात्मिक शक्ति समाहित है जिसने हजारों संतों और साधकों को मार्गदर्शन दिया है। इन्हीं संतों में एक महान संत असंगानंद महाराज थे। जिन्होंने अपने जीवनकाल में समाज को एकता, सद्भाव,और धार्मिक सुधार का संदेश दिया। कनखल में असंगानंद महाराज से जुड़ी जो धरोहरें और आश्रम उनके अनुयायियों और श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र बने थे। वर्तमान परिस्थियों में आज आश्रम उनके प्रबंधकों ने सफेदपोश की मिलीभगत ने उसे दनादन बेचना शुरू कर दिया है। जिसके चलते धार्मिक संपत्ति पर खतरा मंडरा रहा हैं। और बिना जिला जज की अनुमति के करोड़ो रूपए में ट्रस्ट की भूमि का एग्रीमेंट बिल्डर के साथ संत ने अपना निजी स्वार्थ साधने के लिए कर दिया है। जोकि नियमानुसार शून्य है। ट्रस्ट की सार्वजनिक संपत्ति बाबत माननीय न्यायालय में वाद योजित है और अभिलेखों में स्पष्ट है कि यह संपत्ति कतई संत की निजी संपत्ति नहीं है। संत और बिल्डर का दावा यदि निजी का हैं तो सबसे बड़ा सवाल हैं कि संत संपत्ति कहा से लाया?
अभिलेखों के आधार पर यह संपत्ति गुरु शिष्य परंपरा के तहत संत पर उत्तराधिकार के रुप में आई है। धर्मनगरी में प्रापर्टी के बढ़ते दामों ने धर्मिक संपत्तियों, धर्मशालाओं और अखाड़ों के स्वरूप में भी तेजी से परिवर्तन आया है। धार्मिक संपत्तियों के स्थान पर कंकरीट के होटल, दुकाने और अपार्टमैन्ट खड़े हो चुके है। कई अखाड़ो की संपत्तियों पर बड़ी-बड़ी इमारते खड़ी हो चुकी है।

ताजा मामला कनखल-ज्वालापुर मार्ग मध्य सिंहद्वार स्थित हरे राम आश्रम ट्रस्ट से जुड़ा हैं। जहां महामण्डलेश्वर कपिल मुनि और बिल्डर सुनील कुमार अग्रवाल धार्मिक ट्रस्ट की सार्वजनिक संपत्ति को संत की निजी भूमि होने का दावा कर खुर्द-बुर्द करने पर तुले हैं। जबकि तथ्यों के मुताबिक हरे राम आश्रम पूर्ण रूप से धार्मिक एवं सार्वजनिक ट्रस्ट की संपत्ति हैं। जिसकी स्थापना स्वामी असंगानंद द्वारा की गई थी। असंगानंद द्वारा जनता से प्राप्त दान के पैसे से हरे राम आश्रम ट्रस्ट की धार्मिक सम्पत्ति को खरीदा था। असंगानंद ने जनता से दान में मिले पैसे से मंदिर व गौशाला का निर्माण किया था । असंगानंद महाराज द्वारा 1958 में पंजीकृत ट्रस्ट डीड में उन्होंने स्वयं को अध्यक्ष एवं संविधान अनुसार कई ट्रस्टी बनाए थे। हरे राम आश्रम ट्रस्ट के संविधान अनुसार ट्रस्ट की संपत्ति को खुर्द-बुर्द करने का अधिकार किसी प्रबंधक को नहीं हैं। परन्तु सुखदेव मुनि चेला असंगानंद के बाद गद्दी आसीन प्रबंधक महामण्डलेश्वर कपिल मुनि ने ट्रस्ट संविधान में उल्लेंखित नियम और कानून विपरीत सार्वजनिक ट्रस्ट की संपत्ति को निजी बताकर बिल्डर सुनील कुमार अग्रवाल के साथ मिलीभगत करते हुए न सिर्फ ट्रस्ट से संबंधित तथ्यों को छिपाकर बिना जिला जज की अनुमति लिए एचआरडीए से ग्रुप हाउसिंग का मानचित्र संख्या मान0/जी.एच.160/2019-2020 स्वीकृति ले ली, बल्कि 2021 में एक एग्रीमैंट कर दिया और अब एम.एस. एसोसिएट सुनील कुमार अग्रवाल ने इसी एग्रीमैंट के आधार पर एचआरडीए में मा0/आर/ओटीएस/0092/2024-2025 मानचित्र स्वीकृति के लिए आवेदन किया हैं। प्राधिकरण की रोक के बावजूद ट्रस्ट की संपत्ति पर बहुमंजिला फ्लैटों का निर्माण कार्य युद्ध स्तर पर करने के साथ ही फ्लैट बुकिंग का काम भी प्रारंभ करा दिया हैं।
हलांकि हरिद्वार-रूड़की विकास प्राधिकरण ने ट्रस्ट की भूमि पर निर्माणाधीन बहुमंजिला फ्लैट का सातवी मंजिल सील की थी और अब शिकायत के बाद शासन के आदेशों के अनुपालन में जांच हेतु पांच सदस्य समिति बनाई हैं। इसी समिति की रिपोर्ट के आधार एचआरडीए आगे की कारवाही करता दिखेगा। क्यूंकि एचआरडीए आश्रम एवं ट्रस्ट की संपत्तियों पर बिना जिला जज की अनुमति के ग्रुप हाउसिंग प्रोजेक्ट आदि पर मानचित्र स्वीकृति नहीं देता हैं। ऐसे कई मामलों में स्वयं एचआरडीए ने आश्रम की संपत्तियों पर बन रहे आवासीय इकाईयों के प्रोजेक्ट पर मानचित्र स्वीकृति आवेदन की रिपोर्ट में इस विषय में उल्लेंख किया हैं तथा एचआरडीए संबंधित रिपोर्ट में ऐसे ट्रस्ट व आश्रम की संपत्ति पर ग्रुप हाउसिंग या व्यवसायिक प्रोजेक्ट के लिए जिला जज की अनुमति होना अनिवार्य बताया हैं।
बताते चलें कि सुखदेव मुनि के ब्रह्मलीन पश्चात उदासीन अखाड़ा के संतों , ट्रस्टीजनों ने 17.08.87 को सुखदेव मुनि के सत्रहवीं भण्डारे अवसर पर षडदर्शन साधु समाज , उदासीन अखाड़े के संतों एवं ट्रस्टियों ने श्री हरे राम आश्रम ट्रस्ट कनखल का कपिल मुनि को चादरपोशी करते हुए ट्रस्ट का अध्यक्ष नियुक्त किया था। इससे पूर्व हरे राम आश्रम की ट्रस्ट की संपत्ति पर ट्रस्टियों एवं प्रबंधक के मध्य विवाद रहा हैं। ट्रस्टियों ने ट्रस्ट की संपत्ति खुर्द-बुर्द किए जाने के मामले में 1987 संख्या 5/87 माननीय अपर जिला जज तृतीय सहारनपुर एवं माननीय न्यायालय जिला एवं सत्र न्यायाधीश की कोर्ट में 1992 में वाद संख्या-4/92 वाद योजित किया था। हरे राम आश्रम ट्रस्ट से संबंधित वादों के निर्णय में माननीय न्यायालय जिला एवं सत्र न्यायाधीश के स्पष्ट आदेश हैं हरि हरे राम आश्रम ट्रस्ट से जुड़ी कोई भी संपत्ति बिना सक्षम न्यायालय की अनुमति के क्रय विक्रय नहीं की जा सकती हैं। एक तरफ जहां धार्मिक ट्रस्ट की संपत्ति को आज कपिल मुनि व्यक्तिगत हितों के चलते निजी बताने पर तुले हैं वहीं दूसरी तरफ बात करें नगर निगम से प्राप्त सूचना का अधिकार में मिली जानकारी में खुलासा होता हैं संत और बिल्डर के उस संपत्ति के निजी दावे का जिसमें नगर पालिका में गृहकर खाता संख्या -285/178 दादूबाग कनखल में नाम परिवर्तन कराने के लिए कपिल मुनि चेला सुखदेव मुनि ने दिए शपथ पत्र एवं नगर पालिका अधिकारियों को स्वयं हस्ताक्षरित प्रेषित पत्रों में हरे राम आश्रम संपत्ति को धर्मार्थ ट्रस्ट की संपत्ति का कथन स्वयं किया हैं। अब न केवल उस ट्रस्ट की सार्वजनिक संपत्ति को निजी बता कर खुर्द-बुर्द कर रहे हैं बल्कि नियम कानून की धज्जियां उड़ा सरकारी अभिलेखों में दर्ज धार्मिक ट्रस्ट की संपत्ति पर नियम विरूद्ध सात मंजिला आवासीय ईमारत निर्माणाधीन हैं। हरे राम आश्रम ट्रस्ट के संस्थापक अंसगानंद महाराज ने 1963 में उदासीन अखाड़े के संतों एवं क्षेत्र के ही एक काश्तकार से यह संपत्ति खरीद की थी। असंगानंद महाराज ने यह संपत्ति उनके द्वारा गठित हरे राम आश्रम ट्रस्ट में निहित कर दी थी। इस संपत्ति पर कभी खेत खलिहान हुआ करते है आज वहां खेती के स्थान पर इमारते खड़ी है। कुंभ जैसे अवसरों पर इन खेतीहर भूमि को उपयोग में लाया जाता था और पेशवाई व कुंभ में शामिल होने वाले संत, महंतो का डेरा स्थान होता था आज वहां भव्य फ्लैटों का निर्माण कार्य चल रहा हैं।
हरे राम आश्रम ट्रस्ट की संपत्ति अगामी कुंभ में अखाड़ो की संपत्तियों पर सजने वाले डेरो को प्रशासन की व्यवस्था पर निर्भर रहना पड़ेगा। साथ ही शासन-प्रशासन के लिए भी इस तरह के महापर्वो पर भूमि आंवटित करना साधु संतो का डेरा डालवाना भारी मशक्त का कार्य होगा। क्योंकि वर्तमान में अखाड़ों की खेत खलिहानों की जगह तो बड़ी-बड़ी इमारतों ने ले ली है। देखा-देखी अन्य अखाड़ों के संत भी इसी परिपाठी की ओर अग्रसर है। लेकिन इनके व्यवसायिक निर्माणों के मानचित्रों में भी खेल खेला गया है।
फिलहाल, सार्वजनिक ट्रस्ट की संपत्ति पर बिना न्यायालय की अनुमति के धार्मिक संपत्ति को प्रबंधक एवं बिल्डर द्वारा खुर्द-बुर्द किए जाने के मामले में माननीय न्यायालय हरिद्वार में वाद योजित एवं विचाराधीन हैं। लेकिन बावजूद उसके बिल्डर और संत धार्मिक ट्रस्ट की संपत्ति को बिना न्यायालय की प्रक्रिया अपनाए पूर्ण रूप से व्यवसायिक में परिवर्तन करने के लिए आमादा है । इसके लिए बकायादा बिल्डर अपने राजनितिक रसूख व पूंजीपति होने के साथ ही पूर्व मंत्री का खुला संरक्षण लाभ लेकर संबंधित विभागीय अधिकारियों पर दबाव व प्रभाव के मार्फत नियम, कानूनों को ताक पर रख मानचित्र स्वीकृति के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाए हुए हैं। अब देखना हैं कि प्राधिकरण हरे आश्रम ट्रस्ट की सार्वजनिक संपत्ति पर नियमानुसार कारवाही करता हैं या फिर राजनितिक एवं पूंजीपतियों के दबाव में आकर नियम व कानून को ताक पर रख धार्मिक ट्रस्ट की संपत्ति पर अनाधिकृत निर्मार्णाधीन बहुमंजिला ईमारत का मानचित्र स्वीकृत करता हैं।

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